Diya Jethwani

Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -26-Aug-2022... खतरनाक खेल..??

मेरी बड़ी बहन सालों बाद मेरे घर आई थीं...। वो भी सिर्फ दो तीन दिनों के लिए..। उसका बेटा नीरज... अपनी मम्मी से ज्यादा मुझसे टच में था...। दीदी की शादी के बाद जब वो प्रेग्नेंट थी तो मम्मी के यहाँ ही रहीं हुई थीं...ओर नीरज.....सबसे पहले वो मेरी ही गोद में तो आया था...। मम्मी कहती थीं की जो नवजात शिशु को सबसे पहले उठाता हैं बच्चा उसके टच में सबसे ज्यादा रहता हैं...। नीरज के मामले में तो ये सच भी था...। दीदी की शादी के छह साल बाद मेरी शादी हुई... ओर इन छह सालों में जितनी बार भी दीदी घर आई नीरज की पूरी जिम्मेदारी मैं ही लेती थीं...। लेकिन मेरी शादी के बाद मेरा उससे मिलना झुलना बहुत कम या यो कहो ना के बराबर हो गया था.... क्योंकि मैं सयुंक्त परिवार में रहतीं थीं.... तो मुझे मायके जाने की इजाजत मिलती ही नहीं थीं...।अगर कभी दो तीन दिन की मिल भी जाएं तो उस वक्त दीदी का आना मुश्किल होता था...। क्योंकि हम दोनों अलग अलग शहरों में रहते थे....। लेकिन फिर भी नीरज मुझसे फोन पर तो जुड़ा हुआ ही था...। वक्त निकाल कर महीने में एक दो बार हमारी बात हो जाया करतीं थीं...। आज वो सत्रह साल का हो चुका हैं...। इन दो दिनों में मैं अपनी दीदी के साथ शहर की हर प्रसिद्ध जगहों के साथ साथ बहुत से मंदिरों में भी घुमी...। मुझे मुश्किल से ही कही बाहर आने जाने का मौका मिलता था या यूँ कहो की शायद मिलता ही नहीं था....तो दीदी के बहाने ही सही मैं भी इस कुछ दिनों की आज़ादी का भरपूर मजा ले रहीं थीं...। तीसरे दिन दीदी और नीरज अपने घर को चले गए...। लेकिन जाते जाते नीरज की एक बात मुझे अंदर तक सोचने को मजबूर कर गई थीं....। 


दर असल इन दो दिनों में हम एक सर्कस में भी गए थे...। वहाँ हमने बहुत से खेल खेले.... जादूगर का खेल देखा और मौत के कुंए का भी खेल देखा...। मेरी दीदी बहुत कमजोर दिल की थीं इसलिए वो मौत का कुंआ वाला खेल देखने नहीं चलीं लेकिन नीरज की बहुत इच्छा थीं इसलिए मैं उसके साथ गई..। 

दो बाइक सवार और एक कार सवार... तेज़ रफ़्तार से अपनी अपनी गाड़ी को कुएं के चारों तरफ़ गोल गोल घुमाए जा रहें थे...। सच में यह खेल बहुत खतरनाक था.... थोड़ा सा भी बैलेंस इधर उधर हुआ या रफ्तार मे कुछ गड़बड़ हुई तो बंदा तो गया...। 

खेल देखते देखते मेरे मुंह से शब्द निकले :- कितना खतरनाक खेल हैं ये नीरज...। 

मेरी बात सुन नीरज बोला :- मासी... सालो की मेहनत और प्रेक्टिस लगती हैं.. तब जाकर कोई ऐसा खेल कर सकता हैं... वैसे मासी आपको भी तो सालों हो गए हैं.... खेल खेलते हुए..। 

उसकी बातें सुन मैं कुछ समझी नहीं मैने आश्चर्य चकित होतें हुवे पुछा :- खेल.... मैने कौनसा खेल खेला हैं नीरज...!! 

वो मुस्कुराया ओर बोला :- जिंदगी का खेल मासी...। 

मैं अब तक नहीं समझ पाई तो वो मेरी उलझन देखते हुए बोला :- मासी.... हमारे यहाँ आने से आपके चेहरे पर जो रौनक आई हैं वो मुझसे छिपी नहीं हैं... इन दो दिनों में हमारे साथ घूमने... घर से बाहर निकलने में हमसे ज्यादा आप एक्साइटेड थे..। मासी मैने आपके घर का माहौल...आपके बड़ों का स्वभाव सब कुछ अच्छे से देखा और समझा है...। आपने अपने आप को घर की चार दिवारों में कैद करके रख दिया हैं....। क्या शादी से पहले आप ऐसी थीं... नहीं मासी... आप जिंदगी को लेकर कितना पोजेटिव रहतीं थीं...। खेलना कूदना... घुमना फिरना... आपको कितना पसंद था...। अपनी जिंदगी का सबसे खतरनाक खेल तो आप खेल रही हैं मासी.... अपने आप को अपने ही भीतर मारकर..।

 आप ऐसी नहीं थी मासी.... आप जिंदगी को जीने वाली थीं...। आपको याद भी हैं आपने आखिरी बार क्रिकेट मैच कब देखा था टीवी पर... नहीं ना...। एक वक्त था मासी... बल्ला उठाते ही आप सबके छक्के छुड़ा देतीं थीं..। मुझे भी तो क्रिकेट... बैडमिंटन की ट्रेनिंग आपने ही दी थीं ना मासी...! मैं ये नहीं कह रहा हूँ मासी की परिवार की जिम्मेदारी मत उठाओ या सयुंक्त परिवार में मत रहो या काम मत करो....। मैं सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ मासी खुद को तकलीफ देकर... खुद के सारे अरमान मारकर... खुद की सारी खुशियाँ दांव पर लगाकर.... क्या ये सब करना सही हैं...? एक बार सोचकर देखना मासी... । 


नीरज तो अपनी बात कहकर चला गया... लेकिन क्या सही और क्या गलत मैं आज तक समझ नहीं पाई हूँ...। सोचने को विवश तो कर गया... पर सिर्फ मेरे सोचने... विचार करने से कुछ बदल पाएगा...? 
मुझे खुद नही पता... क्या सच में मैं इसी मैं खुश हूँ...????? 

   25
15 Comments

Behtarin rachana

Reply

Chetna swrnkar

27-Aug-2022 08:37 PM

Nice

Reply

Mahendra Bhatt

27-Aug-2022 07:40 PM

बेहतरीन

Reply